वासना और भक्ति का संबंध




**वासना और भक्ति का संबंध**  

- वासना को पूरी तरह से त्यागना संभव नहीं है, क्योंकि यह जीवात्मा की स्वाभाविक इच्छा है।  

- भक्ति का वास्तविक अर्थ है भगवान की सेवा में खुद को समर्पित करना, बिना किसी स्वार्थ के।  

- भक्ति का उच्चतम रूप तब प्रकट होता है जब व्यक्ति भगवान से कुछ भी मांगने की बजाय केवल सेवा करने की प्रेरणा रखता है।  


**भगवत भक्ति की परिभाषा**  

- शुद्ध भक्ति वह है जिसमें भौतिक लाभ की चाह न हो; यह केवल भगवान की आराधना और सेवा पर केंद्रित होती है।  

- भक्त जब भक्ति के माध्यम से भोग और मुक्ति की कामना करता है, तो वह अशांत रहता है।  

- चैतन्य तामृत में कहा गया है कि भुक्ति, मुक्ति, और सिद्धि चाहने वाले लोग हमेशा अशांत रहते हैं।  


**वासना को पवित्र करना**  

- वासना को छोड़ना असंभव है; इसके बजाय, इसे पवित्र बनाने की आवश्यकता है।  

- शास्त्रों में बताया गया है कि शुद्ध वासना वह है जो भगवान की सेवा के लिए होती है।  

- व्यक्ति की वासना को सही दिशा में मोड़ने के लिए भक्ति और ध्यान आवश्यक हैं।  


**भगवान की कृपा और भक्ति**  

- भक्त जब भगवान से भौतिक चीजों की प्रार्थना करता है, तो यह प्रारंभिक चरण है, जो अंततः उच्चतर भक्ति की ओर ले जा सकता है।  

- अन्यथा, भक्तों का ध्यान केवल भौतिक लाभ पर केंद्रित रहने से वे उच्चतर आध्यात्मिक अनुभव से वंचित रह जाते हैं।  

- असली भक्ति तब होती है जब व्यक्ति अपनी इच्छाओं को भगवान की सेवा में समर्पित करता है।  


**हरे कृष्णा मंत्र का महत्व**  

- "हरे कृष्णा" मंत्र का अर्थ है भगवान की शक्ति और कृपा की प्रार्थना करना।  

- यह मंत्र भक्त को भगवान की सेवा में संलग्न होने और उसकी कृपा प्राप्त करने का उपाय प्रदान करता है।  

- इस मंत्र के जप से भक्त अपने अंतर्मन में शुद्धता और दिव्यता को अनुभव करता है।  




**भगवत भक्ति और सेवा**


भगवत भक्ति, जिसे भगवान की सेवा के रूप में समझा जाता है, एक गहन और शुद्ध विचार है। इसे केवल भोग या इच्छाओं की पूर्ति के लिए नहीं अपनाया जाना चाहिए। शुद्ध भक्ति का अर्थ है भगवान को सब कुछ देना और उनसे कुछ न मांगना। जब तक भक्ति में मांगने का तत्व रहेगा, तब तक शांति की प्राप्ति संभव नहीं है। चैतन्य तामृत के अनुसार, भुक्ति, मुक्ति, और सिद्धि की इच्छाएं अशांति का कारण हैं, जबकि कृष्ण भक्त निष्काम और शांत होते हैं।


**प्रारंभिक भक्ति और इच्छाएं**


शुरुआत में, भक्त कई बार भक्ति को भोग के लिए आधार मानते हैं। जैसे ध्रुव महाराज ने भोग के लिए भगवान का ध्यान किया, परंतु जब उन्हें भगवान का साक्षात्कार हुआ, तो उन्होंने भोग की इच्छाओं को त्याग दिया। शास्त्रों में वर्णित है कि भक्ति के चार प्रकार होते हैं: आर्थ, अर्था, जिज्ञासु, और ज्ञान। ये सभी प्रकार के भक्त किसी ना किसी कारण से भगवान की ओर आकर्षित होते हैं, चाहे वे दुखी हों या समृद्ध।


**वासना का त्याग और पवित्रता**


वासना का त्याग करना असंभव है, क्योंकि जीवात्मा की स्वाभाविक प्रवृत्ति इच्छाएं रखना है। वासना को खत्म करने का प्रयास करना जीव को पत्थर बना देता है। इसलिए, वासना को पवित्र करना अधिक उचित है। हमें अपनी वासनाओं को शुद्ध करना चाहिए और उन्हें भगवान की सेवा की ओर मोड़ना चाहिए। उपाधियों से मुक्त होकर, शुद्ध वासना की ओर बढ़ना ही सच्ची भक्ति है।


**हरे कृष्णा मंत्र का महत्व**


"हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे" का महामंत्र भगवान की शक्ति और उनके प्रति समर्पण का प्रतीक है। यह मंत्र हमारे मन और हृदय को पवित्र करने के लिए है। इसका उच्चारण करते समय भक्त भगवान से प्रार्थना करता है कि वे उसे अपनी सेवा में लगाएं। यह मंत्र भगवान के आनंद और शक्ति का आह्वान करता है, जिससे भक्त को उनकी निकटता और कृपा प्राप्त होती है।


**शुद्ध भक्ति की पहचान**


शुद्ध भक्ति वह है, जो उपाधियों और भौतिक वासनों से मुक्त है। यह केवल भगवान की सेवा में समर्पित होती है। भक्ति का यह स्तर न केवल आत्मा को शांति प्रदान करता है, बल्कि भक्त को दिव्य आनंद की अनुभूति भी कराता है। इसलिए, शुद्ध भक्ति को अपनाकर और वासना को पवित्र करके, व्यक्ति अपनी आत्मा के सच्चे स्वरूप की पहचान कर सकता है।

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